balasore train accident

Editorial: बालासोर ट्रेन हादसे की सीबीआई जांच समय की मांग

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Demand for time for CBI investigation in Balasore train accident

Balasore train accident: ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की सीबीआई से जांच की सिफारिश देश में रेल गाडिय़ों के साथ हुए हादसों के इतिहास में पहली बार है। यह हादसा स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली ऐसी भीषण घटना है, जिसने न केवल देश अपितु पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। जब भारत विश्व के सिरमौर देशों की श्रेणी में आने को तैयार है, तब उस देश में रेल यात्रा के सुरक्षित न होने पर सवाल उठना बेहद चिंताजनक है और यही वजह है कि केंद्र सरकार ने इस हादसे की सभी पक्षों से जांच की जरूरत समझी है।

निश्चित रूप से अब देश के अंदर दस या पंद्रह साल पहले रेलवे का जो सुरक्षा तंत्र था, उसमें भारी परिवर्तन आ चुका है, अब रेलवे के पास अत्याधुनिक उपकरण हैं और पूरी प्रणाली ऑटोमेटिक हो चुकी है, जिसमें मानवीय भूल की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है। लेकिन बालासोर में चार ट्रेन का एक-दूसरे से यूं गुत्थमगुत्था होना अपने आप में अचंभित करने वाली घटना है और निश्चित रूप से इसमें किसी की शरारत हो सकती है। आखिर इतने बड़े देश में जहां प्रत्येक क्षण देश विरोधी ताकतें अपने मंसूबे पूरे करने में जुटी रहती हैं, वहां ऐसे भयानक अपराध को अंजाम नहीं दिया जा सकता, इस पर कैसे यकीन किया जा सकता है।

रेलवे मंत्री का बयान है, जिसमें उन्होंने कहा है कि इस हादसे के जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वे लोग रेलवे के अंदर के हैं या फिर बाहर से। रेलवे के अधिकारी साफ कह रहे हैं कि शुरुआती तौर पर लग लगता है कि सिग्नल में गड़बड़ी थी, इसमें कोरोमंडल ट्रेन के चालक की गलती नहीं थी, क्योंकि उन्हें ग्रीन सिग्नल मिल चुका था। इसी तरह बाकी दोनों गाडिय़ां भी अपने सिग्नल के मुताबिक ही ट्रेक पर थी, तब सवाल यही है कि आखिर माल गाड़ी उस ट्रेक पर क्या कर रही थी। रेलवे के एक अधिकारी यह भी बता रहे हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित इलेक्ट्रानिक इंटरलॉकिंग प्रणाली से छेड़छाड़ केवल जानबूझकर ही की जा सकती है।

यानी यह प्रणाली इतनी सटीक है कि इसमें खुद कोई खामी नहीं हो सकती। उनकी यह भी आशंका है कि यह अंदर या बाहर से छेड़छाड़ या तोडफ़ोड़ का मामला हो सकता है। बताया गया है कि स्टेशन मास्टर के पास लगे पैनल को ट्रेन आने से पहले की सिग्नल की स्थिति भेजी जाती है, हादसे में पैनल पर दिख रहा था कि ट्रेन मेन लाइन से जा रही है, जबकि कांटे के पास ट्रेन को लूप लाइन का सिग्नल मिल गया। इससे वह वहां खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। अब यही सवाल है आखिर यह सिग्नल मिला कैसे?

इस हादसे के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है, विपक्ष के नेताओं ने रेल मंत्री पर हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की मांग की है। प्रश्न यह है कि क्या एक तकनीकी खामी, जोकि किसी की लापरवाही से हुई या फिर उसे साजिशन अंजाम दिया गया, की जिम्मेदारी भी रेल मंत्री के ऊपर थोप दी जाए। यह रवायत आजादी के बाद होते आए हादसों में पूरी शिद्दत से निभाई जाती थी, हालांकि उन खामियों को दूर करने की कोशिश नहीं होती थी, जिनकी वजह से हादसे होते थे। रेलवे मंत्रालय का तो कभी बजट भी अलग से पेश होता था, लेकिन मोदी सरकार ने आकर इसे सामान्य बजट के साथ पेश करना शुरू किया। तब से रेलवे के आधुनिकीकरण के प्रयास भी जारी हैं।

देश में अब वंदे भारत जैसी सुपरफास्ट ट्रेन दौड़ रही हैं, हालांकि एक समय गरीब रथ ही पूरे प्रचार के तामझाम के साथ दौड़ाए जाते थे। उस समय रेल मंत्रालय सुख और सुविधाएं भोगने का ऐसा विभाग होता था, जिसका कहीं कोई छोर नहीं मिलता। यह सब नजरिये का अंतर है, इस समय भारतीय रेल का स्वरूप भी बदल रहा है, ऐसे में इस हादसे ने यह सोचने पर विवश किया है कि जब इतना कुछ नवीन हो रहा है तब आखिर हादसा कैसे घट गया।

इस हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्री एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ न केवल पूरे हादसे के कारणों को समझने की कोशिश की है, वरन उन्होंने मौके पर जाकर भी वस्तुस्थिति का पता लगाने का प्रयास किया है। उन्होंने अस्पतालों में भर्ती घायल यात्रियों से मुलाकात की। निश्चित रूप से एक सरकार का प्रथम दायित्व यही होता है कि वह अपने नागरिकों की हरसंभव मदद करे। लेकिन इसके साथ यह भी जरूरी है कि सरकार ऐसे जत्न करे कि भविष्य में ऐसी घटना न घटे। इसके लिए उन सभी पक्षों पर विचार जरूरी है, जोकि मौजूदा एवं भविष्य के लिए आवश्यक हैं। बेशक, उन सभी लोगों पर कार्रवाई जरूरी है, इनमें रेल मंत्री भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन यह भी आवश्यक है कि कारणों की सटीक खोज हो और जो वास्तव में जिम्मेदार है, उसे सजा मिले। इन सैकड़ों मौतों के लिए किसी की तो जिम्मेदारी बनेगी ही। 

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